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केरल: नर्स निमिषा प्रिया को यमन में फांसी की सजा क्यूँ? भारत सरकार अखिर क्यूँ है लाचार? जानिए
केरल की रहने वाली निमिषा प्रिया (Nimisha Priya) को यमन में 16 जुलाई को मौत की सजा दी जाएगी। निमिषा पर यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या का आरोप है। निमिषा को बचाने के लिए भारत सरकार तमाम कोशिशें कर रही है।
मौजूदा वक्त में यमन गृहयुद्ध की चपेट में है। वहां, हूती विद्रोहियों और यमन की सरकार के बीच संघर्ष चल रहा है। हालांकि,हूती विद्रोही गुट, देश की बागडोर संभालते हैं। हूती विद्रोहियों के शीर्ष राजनीतिक परिषद ने ही निमिषा के फांसी की मंजूरी दी है।
यमन में इस समय फांसी की सजा देने का एक ही तरीका है। दोषी को गोली मार देना।
इससे पहले यमन में फांसी देने की प्रक्रिया अलग-अलग थी। जैसे कि पत्थर मारकर दोषी की जान ले ली जाती थी। दोषी को सरेआम फांसी पर लटकाया जाता था या उसका सिर कलम कर दिया जाता था।
केरल की नर्स निमिषा प्रिया को यमन में 2017 में एक स्थानीय बिजनेसमैन की हत्या के मामले में 16 जुलाई को फांसी दी जानी है. भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने सभी प्रयास कर लिए हैं लेकिन अब मामला उसके नियंत्रण से बाहर है क्योंकि यमन के हूती प्रशासन से भारत के औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं. शरीया कानून के तहत 'ब्लड मनी' के जरिए माफी की संभावना थी, लेकिन पीड़ित परिवार ने बातचीत से इनकार कर दिया.
केरल की रहने वाली 38 वर्षीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन में 2017 में एक स्थानीय बिजनेसमैन की हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया है और उनकी फांसी 16 जुलाई 2025 को तय की गई है. इस बीच, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने हर संभव प्रयास कर लिए हैं, लेकिन अब हालात उसके नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं. भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटारमणी ने सुप्रीम कोर्ट को सोमवार को बताया कि सरकार एक हद तक ही जा सकती है और वह हद पार कर चुकी है. हर चैनल का इस्तेमाल किया जा चुका है, लेकिन कुछ काम नहीं आया. भारत ने यमन के प्रभावशाली शेख से भी संपर्क किया, जिनसे उम्मीद थी कि वो स्थानीय प्रशासन को मनाएंगे, लेकिन अब तक कोई आधिकारिक आश्वासन नहीं मिला है.
ब्लड मनी’ भी नहीं बनी समाधान यमन के हूती शासित क्षेत्र में शरिया कानून लागू है, जिसके अनुसार हत्या के मामलों में दोषी को माफ किया जा सकता है, यदि मृतक के परिवार को आर्थिक मुआवजा यानी 'ब्लड मनी' दी जाए. निमिषा के परिवार ने भारी रकम जुटाकर पीड़ित परिवार को मनाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई संवाद करने से इनकार कर दिया. हूती प्रशासन ने भी बातचीत में दिलचस्पी नहीं दिखाई और इसे 'इज्जत का मामला' बताया. सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता संगठन 'सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल' की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि विदेशी देश के मामले में कोई आदेश देना मुश्किल है. ऐसे आदेश को मानने वाला कौन होगा? कोर्ट ने अगली सुनवाई 18 जुलाई को तय की है, लेकिन कहा कि अगर उससे पहले कोई प्रगति होती है, तो सूचित किया जाए. ये भी पढ़ें :गुपचुप रिकॉर्ड की गई बातचीत भी वैध सबूत: SC ने कहा - शादी में जब भरोसा ही टूट जाए तो प्राइवेसी का बहाना नहीं चलेगा क्या है पूरा मामला? निमिषा प्रिया ने 2008 में यमन में नौकरी के लिए कदम रखा था. शुरुआत में अस्पतालों में नर्स के तौर पर काम करने के बाद उन्होंने एक स्थानीय नागरिक तलाल अब्दो महदी के साथ मिलकर क्लिनिक शुरू किया. बाद में उन्होंने आरोप लगाया कि महदी उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था और उनका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया था. पासपोर्ट वापस पाने की कोशिश में उन्होंने उसे बेहोश करने के लिए दवा दी, लेकिन उसकी ओवरडोज से मौत हो गई. यमन की राजधानी सना की अदालत ने 2020 में उन्हें मौत की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में हूती प्रशासन की सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने भी बरकरार रखा. निमिषा की मां की संघर्षपूर्ण यात्रा निमिषा की मां प्रेमा कुमारी पिछले एक साल से सना में रहकर बेटी के लिए माफी की गुहार लगा रही हैं. भारत सरकार की यात्रा पर रोक की वजह से उन्हें हाईकोर्ट से विशेष अनुमति लेकर यमन जाना पड़ा था. अब भारत और निमिषा के परिवार की उम्मीदें हूती प्रशासन की दया पर टिकी हैं- जहां ना कूटनीतिक संबंध हैं और ना ही स्पष्ट संवाद की कोई गारंटी.
क्या है मौत की सजा का प्रोसेस?
यमन में मौत की सजा की सजा की पूरी प्रोसेस भी अब समझ लीजिए। यमन के मौत की सजा देने के लिए एक पूरी रूल बुक है। इस रूल बुक में अलग-अलग अनुच्छेद में समझाया गया है कि वहां दोषियों को किस प्रकार मौत की सजा दी जाती है।
आर्टिकल्स में किया गया है मौत की सजा का जिक्र
आर्टिकल 477
मौत की सजा के एलान के दोषी को हर समय पुलिस की निगरानी में रखा जाएगा। वहीं, पुलिस को गिरफ्त में ही रहेगा।
आर्टिकल 478
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जब किसी व्यक्ति को मौत की सजा दी जाती है तो सजा की सारी लिखित जानकारी महा अभियोजक को भेजा जाएगा, ताकि देश के राष्ट्रपति को मौत की सजा की जानकारी दी जाए सके।
आर्टिकल 479
देश के राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही किसी व्यक्ति को मौत की सजा दी सकती है।
आर्टिकल 484
देश में गर्भवती महिला को तब तक सजा नहीं दी जा सकती है, जब तक वो बच्चे को जन्म न दे दें। बच्चे के जन्म के दो साल और जब तक बच्चे की देखभाल के लिए कोई दूसरा व्यक्ति न मिल जाए तब तक महिला को मौत की सजा नहीं दी जा सकती है।
आर्टिकल 485
दोषी को गोली मारकर मौत की सजा दी जाएगी। इसी आर्टिकल के तहत निमिषा को मौत की सजा दी जा सकती है।
आर्टिकल 487
अगर किसी व्यक्ति को पत्थर मारने की सजा दी जाती है तो उसे तब तक पत्थर मारा जाएगा। जब तक कि उसकी मृत्यु न हो जाए।
आर्टिकल 488
जिन व्यक्तियों को मृत्युदंड या पत्थर मारने की सजा सुनाई जाती है, उनके शव को दफनाने का खर्च सरकार वहन करेगी, बशर्ते कि उनके पास ऐसा करने का अनुरोध करने वाला कोई रिश्तेदार न हो; और यदि ऐसे रिश्तेदार ऐसा करने का अनुरोध करते हैं, तो उन्हें अपना अनुरोध पूरा करने की अनुमति दी जाएगी।
केरल की निमिषा प्रिया कैसे पहुंची यमन?
इस कहानी की शुरुआत होती है साल 2018 से, जब निमिषा 18 साल की थी। निमिषा की मां दूसरे के घरों में काम करती थी। मां-बेटी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। किसी तरह निमिषा ने नर्सिंग का कोर्स किया था। हालांकि, केरल में उसे नर्सिंग की नौकरी नहीं मिली।
इसके बाद निमिषा को पता चला कि यमन में नर्सिंग के अच्छे अवसर हैं। 19 वर्ष की निमिषा अच्छे भविष्य के लिए यमन जाने के लिए तैयार हो गई। उस समय यमन में शांति थी। यमन में निमिषा को सरकारी अस्पताल में नौकरी भी मिल गई।
टॉमी थॉमस से कोच्चि में रचाई थी शादी
निमिषा की जिंदगी में सब कुछ अच्छा चल रहा था। उसने केरल आकर ऑटो चलाने वाले टॉमी थॉमस से शादी भी रचा ली। शादी के बात पति के साथ वो यमन लौट गईं। थॉमस ने भी यमन में नौकरी ढूंढ ली। फिर साल 2012 में निमिषा ने एक बेटी को जन्म दिया।
हालांकि, यमन में बेटी का देखभाल करना दंपति के लिए कठिन था। इसलिए थॉमस ने फैसला किया कि वो अपनी बेटी के साथ कोच्चि लौट जाएगा। 2014 में थॉमस अपनी बेटी के साथ कोच्च लौट गया। वहीं, दूसरी यमन में गृहयुद्ध की स्थिति बन गई।
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