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Monday, 23 June 2025

पिछले दो सालों में भुखमरी से दुनिया भर में 29.5 करोड़ लोग प्रभावित - संयुक्त राष्ट्र

रोम, । संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (फाओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की स्थिति और खराब हुई, जिससे 53 देशों में 29.5 करोड़ लोग भूख से प्रभावित रहे।

साल 2023 की तुलना में पूरी दुनिया में भूख से प्रभावित लोगों की संख्या में 1.37 करोड़ की वृद्धि हुई है। यह आंकड़ा दुनिया के सबसे कमजोर क्षेत्रों में तीव्र खाद्य असुरक्षा में लगातार छठी वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है।


खाद्य संकटों पर साल 2025 में वैश्विक नेटवर्क में यह रिपोर्ट छपी थी। यह एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन है जिसमें खाद्य और कृषि संस्थान, संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम और विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठन शामिल हैं।


संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इन आंकड़ों को दुनिया के लिए बेहद खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि दुनिया में भूख और कुपोषण के फैलने की दर हमारी नियंत्रण क्षमता से कहीं अधिक है। हालांकि वैश्विक स्तर पर उत्पादित अन्न का एक-तिहाई बर्बाद हो जाता है।


एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए फंड में कमी होना लगातार भूखमरी जैसी वैश्विक समस्या को और जटिल बना रहा है।


तीव्र खाद्य असुरक्षा आम तौर पर कई कारकों के संयोजन से उत्पन्न होती है। इसमें गरीबी, आर्थिक झटके और मौसम में असंतुलन अहम हैं। आबादी के कुछ हिस्से को भूख के अलावा कुछ दूसरी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।


साल 2024 में सूडान के कुछ हिस्सों में अकाल की पुष्टि हुई थी। गाजा पट्टी, दक्षिण सूडान, हैती और माली में खाद्य असुरक्षा भयावह स्तर पर दर्ज की गई थी। गाजा पट्टी में, मानवीय सहायता में वृद्धि की वजह से अकाल की स्थिति नहीं बनी।


रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान और नाकाबंदी जारी रही तो मई और सितंबर 2025 में जोखिम बढ़ सकता है।


समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में जबरन विस्थापित किए गए 12.8 करोड़ लोगों में से लगभग 9.5 करोड़ - जिसमें आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति, शरण चाहने वाले और शरणार्थी शामिल हैं - पहले से ही खाद्य संकट से जूझ रहे देशों में रह रहे थे।


इसके अलावा, आर्थिक झटकों ने 15 देशों में खाद्य असुरक्षा को जन्म दिया, जिससे 5.94 करोड़ लोग प्रभावित हुए, मौसम में बदलाव की घटनाओं ने भी 18 देशों को संकट में डाल दिया, जिससे 9.6 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए, विशेष रूप से दक्षिण एशिया, अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में लोग प्रभावित हुए।


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