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Sunday, 29 June 2025

5 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस, कब हुई शुरूआत और क्या है इतिहास?

कबीर दास वह कवि जो धर्म, जाति और भाषा से परे था, वह शिष्य को गुरु का मान करना सिखा गया।

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरू अपने जिन गोविंद दियो बताय।।


जिस तरह एक पक्की नींव ही मजबूत भवन का निर्माण करती है, ठीक उसी प्रकार शिक्षक विद्यार्थी रूपी नींव को सुदृढ़ कर उस पर भविष्य में सफलता रूपी भवन खड़ा करने में सहायता करता है। एक शिक्षक ही है, जो मनुष्य को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाता है और जीवन में सही और गलत को परखने का तरीका बताता है। यूं तो एक बच्चे के जीवन में उसकी मां पहली गुरू होती है, जो हमें संसार से अवगत कराती हैं। और दूसरे स्थान पर शिक्षक होते हैं, जो हमें सांसारिक बोध कराते हैं। जिस प्रकार एक कुम्हार मिट्टी को बर्तन का आकार देता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षक छात्र के जीवन को मूल्यवान बनाता है। शिक्षक से हमारा संबंध बौद्धिक और आंशिक होता है। प्रत्येक वर्ष डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के उपलक्ष्य में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।


इस दिन आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति डा सरवपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुतानी गावं में हुआ था। उन्होंने 1952 से 1962 तक भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। वह 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति और 1939 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी काम किया। डा. राधाकृष्णन को 1954 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। विश्व भर में शिक्षक दिवस 5 अक्तूबर को मनाया जाता है, लेकिन भारत में यह 5 सितंबर को मनाया जाता है। तमिलनाडु के तिरुतनी में जन्में सर्वपल्ली राधाकृष्णन का परिवार सर्वपल्ली नामक गांव से ताल्लुक रखता था। उनके परिवार ने गांव छोडऩे के बाद भी गांव के नाम को नहीं छोड़ा। सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचपन से ही एक मेधावी छात्र थे और छात्रवृत्ति के माध्यम से ही उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। महज 18 साल की उम्र में उन्होंने एथिक्स ऑफ वेदांत पर अपनी एक किताब लिखी और 20 साल की उम्र में वह मद्रास प्रेजिडेंसी कालेज में फिलोसोफी विभाग में प्रोफेसर बन गए। उन्होंने दर्शन शास्त्र में न केवल डिग्री ली, बल्कि लेक्चरर भी बने।

इसलिए मनाया जाता है टीचर्स डे

डॉक्टर राधाकृष्णन चाहते थे कि उनका जन्मदिन देशभर के शिक्षकों को याद करने के लिए मनाया जाए, ताकि शिक्षकों के योगदान को सम्मान मिल सके। यही कारण है कि साल 1962 से प्रत्येक वर्ष हम सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। दरअसल उनके जन्मदिन को कुछ छात्र बड़े धूमधाम से मानना चाहते थे, लेकिन जब ये बात डा. राधाकृष्णन को पता चली तो उन्होंने अपने जन्मदिन को मानाने की जगह इसे शिक्षक दिवस के रूप में मानाने की बात कही। तभी से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत हुई। हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षकगण एक अहम् भूमिका निभाते हैं ये विद्यार्थियों को एक सही दिशा देते हैं परिवार के बाद टीचर ही हैं, जो हमे दुनिया को देखना और समझना सिखाते हैं शिक्षकों की दी हुई सीख आजीवन काम आती है।

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